हिसाब बराबर मूवी रिव्यू R Madhavan की ‘हिसाब बराबर’ क्यों नहीं है सही?

हिसाब बराबर मूवी रिव्यू। भारत में बैंक घोटालों और भ्रष्टाचार पर आधारित कई फिल्में बनी हैं, जैसे ‘नायक,’ ‘स्पेशल 26,’ और रेड’। इन फिल्मों ने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया और यादगार बन गईं। लेकिन R माधवन, कीर्ति कुल्हारी और नील नितिन मुकेश स्टारर ‘हिसाब बराबर’ दर्शकों को बांधने में नाकाम रहती है। कमजोर निर्देशन और औसत कहानी इसे नीचे खींच लाती है।

अगर आप हिसाब बराबर मूवी रिव्यू को ध्यान में रखते हुए सोच रहे हैं कि यह फिल्म देखी जाए या नहीं, तो इसकी स्क्रिप्ट और किरदारों की कमजोरियां आपको सोचने पर मजबूर कर सकती हैं।

क्या है हिसाब बराबर की कहानी?

फिल्म राधे (R माधवन) की कहानी है, जो भारतीय रेलवे में एक टिकट कलेक्टर है। वह हर चीज़ में सही हिसाब बराबर चाहता है। चाहे संतरे खरीदना हो या बैंक खाते में पैसे की गड़बड़ी को सुधारना। कहानी तब मोड़ लेती है जब राधे को बैंक में बड़े घोटाले का पता चलता है।

बैंक के मालिक मिकी मेहता (नील नितिन मुकेश) इस घोटाले के पीछे हैं। पुलिस अधिकारी प. सुभाष (कीर्ति कुल्हारी) के साथ राधे इस घोटाले को उजागर करने की कोशिश करता है। फिल्म की कहानी सुनने में दिलचस्प लगती है, लेकिन कमजोर पटकथा इसे बेहद साधारण बना देती है।

हिसाब बराबर मूवी रिव्यू

क्यों है निर्देशन में कमी?

अश्वनी धीर का निर्देशन फिल्म को न तो रोमांचक बनाता है और न ही भावनात्मक रूप से जोड़ता है। कहानी का आरंभ तो सही दिशा में होता है, लेकिन धीरे-धीरे यह अपनी पकड़ खो देती है।

हिसाब बराबर मूवी रिव्यू के लिहाज से फिल्म की सबसे बड़ी समस्या है कि इसमें किरदारों और घटनाओं के बीच तालमेल की कमी है। R माधवन और कीर्ति कुल्हारी के बीच की केमिस्ट्री दर्शकों को प्रभावित नहीं कर पाती।

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नील नितिन मुकेश की भूमिका

मिकी मेहता के रूप में नील नितिन मुकेश एक लालची बैंकर का किरदार निभाते हैं। लेकिन उनका अभिनय किरदार की गंभीरता को दर्शाने में असफल रहता है। वह अपने डायलॉग्स के बीच में नाचने लगते हैं, जो उनके किरदार को मजाकिया बना देता है।

हिसाब बराबर मूवी रिव्यू में नील का यह किरदार एक मजबूत खलनायक बनने के बजाय पूरी फिल्म की गंभीरता को बर्बाद कर देता है।

R माधवन की मेहनत

R माधवन ने अपने किरदार को ईमानदारी से निभाने की पूरी कोशिश की है। उनकी मेहनत और अनुभव उनके अभिनय में झलकता है। लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट और औसत निर्देशन उनके प्रयासों को बर्बाद कर देते हैं।

हास्य और भावनाओं की कमी

फिल्म में हास्य डालने के लिए रश्मि देसाई का किरदार जोड़ा गया है। लेकिन उनकी भूमिका न तो कहानी में कोई योगदान देती है और न ही दर्शकों को हंसा पाती है।

भावनाओं की कमी इस फिल्म को और भी कमजोर बनाती है। दर्शक न तो हंस पाते हैं, न ही किरदारों से जुड़ पाते हैं।

हिसाब बराबर मूवी रिव्यू – क्या यह फिल्म देखें?

हिसाब बराबर मूवी रिव्यू को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि यह फिल्म मनोरंजन के मामले में बिल्कुल भी प्रभावशाली नहीं है। कमजोर निर्देशन, औसत कहानी और खराब किरदार इसे देखने लायक नहीं बनाते।

निष्कर्ष

‘हिसाब बराबर’ एक ऐसी फिल्म है जो सही संदेश देना चाहती है, लेकिन इसे प्रस्तुत करने का तरीका कमजोर है। R माधवन और कीर्ति कुल्हारी जैसे शानदार कलाकार भी इस फिल्म को बचा नहीं पाते।

रेटिंग: 1.5/5

अगर आप सोच रहे हैं कि हिसाब बराबर मूवी रिव्यू के आधार पर यह फिल्म देखनी चाहिए या नहीं, तो इसे छोड़ना ही बेहतर होगा। फिल्म में न मनोरंजन है, न कहानी, और न ही भावनात्मक गहराई।

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मेरा नाम रीना यादव है, और मैं desiheadlines24.com के लिए लेखिका हूँ, जहाँ मैं मनोरंजन, शिक्षा, और नौकरियों से जुड़े विषयों पर लेख लिखती हूँ।

1 thought on “हिसाब बराबर मूवी रिव्यू R Madhavan की ‘हिसाब बराबर’ क्यों नहीं है सही?”

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